( तर्ज - नारायण जिनके हिरदे में ... ) सचकाम किया जगमे जिसने ,
उसने प्रभुनाम लिया न लिया ।
अपने मनको बसमें हो किया ,
वह चारों हि धाम गया न गया ॥ टेक ॥
है जिसके जबाँपर प्रेम भरा ,
कटुता पटुता का गर्व नहीं ।
हर मानव से समता जिसकी ,
वह मन्दर ध्यान किया न किया ॥१ ॥
सेवा ही बना जीवन जिसका ,
बदला न चहे दिल से किसका ।
जो मस्त रहे अपने धुन में ,
वह गुरु का मंत्र लिया न लिया ॥ २ ॥
सब भेख बराबर है जिसको ,
सब संत और पंथसे प्रेम वही ।
जिसके भाषण में झूठ नहीं ,
वह ग्रंथ का पाठ किया न किया ॥ ३ ॥
यदि मौत भि आय किसी क्षण में ,
या संकट पर्वत प्रायः पड़े ।
तुकडया कहे जो डरता न उसे
तब औरों का साथ लिया न लिया || ४ ||
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